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कबीर दास जी के दोहे


हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।। 

अर्थ :

यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं, सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

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